साहित्य अकादमी म.प्र. के बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार व अखिल भारतीय विद्वत परिषद्, वाराणसी के कादम्बरी पुरस्कार से सम्मानित कृति
साहित्य अकादमी म.प्र. के बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार
Sahitya Academy, Culture Dept. Govt.
of Madhya Pradesh awarded Balkrishna Sharma ‘Naveen’ Regional Award. (First
Hindi novel specifically focused on the legal aspects in favor of rape victim).
Dr. Meenakshi Swami receiving Award by
contemporaneous Hon. Minister Culture Shri Lakshmikant Sharma, Director Sahity Academy
professor TRibhuvannath Shukla.
प्रकाशक - सामयिक प्रकाशन, दिल्ली
अखिल भारतीय विद्वत परिषद्, वाराणसी, कादम्बरी पुरस्कार
Kadambari Award by AkhilBhartiya Vidvat Parishad, Varanasi.
साहित्य अकादमी म.प्र. के बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार व अखिल भारतीय विद्वत परिषद्, वाराणसी के कादम्बरी पुरस्कार से सम्मानित कृति
"भूभल" बलात्कार के कानूनी पहलू पर केन्द्रित हिंदी का पहला उपन्यास
‘भूभल’ अर्थात चिंगारियों से युक्त गर्म राख, निरंतर प्रज्जवलित रखने के लिए इसमें कंडा (उपला) दबा दिया जाता है और इसे जब चाहे हवा देकर फिर से लौ बनाया जा सकता है। उपन्यास की नायिका अपने भीतर मौजूद चेतना की अग्नि से विवशताओं, विरोधाभासों के प्रवाह को मोड़कर अपने समय और समाज के बीच उस अग्नि को प्रज्जवलित रखती है, जो धीरे-धीरे लौ बनने को आतुर है। स्त्री स्वतंत्रता से जुड़ा अहम प्रश्न है दैहिक स्वतंत्रता का। इस संदर्भ में सदा यही बात उठती है कि वह अपने चाहने पर किसी से संबंध बना पाती है या नहीं?
मगर इससे भी अधिक महत्व का प्रश्न यह है कि न चाहने पर स्त्री इसे रोक पाती है या नहीं? किसी महिला के साथ जबरिया यौन संबंध वैश्विक परिदृश्य का दिल दहला देने वाला सच है। इसका सामाजिक पहलू तो कड़वा है ही, कानूनी पहलू भी स्त्री के पक्ष में खड़ा होने के बावजूद उसे शिकार बनाने के इस खेल में अनजाने ही शामिल हो जाता है। उपन्यास इस कड़वे, निर्वसन सत्य को बेबाकी से सामने रखता है।
चर्चित लेखिका के पास कथ्य है, तथ्य हैं, मार्मिक पक्ष को देखने की अनुपम दृष्टि है। इस साहसिक, विचारोत्तेजक, मार्मिक उपन्यास से गुजरते हुए पाठक कहीं आक्रोशित होंगे तो कहीं उनकी आत्मा करुण क्रंदन करेगी, फिर भी वे इसे एक बार में पढ़ने को विवश होंगे।
उपन्यास की विषय वस्तु बिल्कुल नई है और पृष्ठभूमि कानूनी। कानून जैसे शुष्क विषय काव्यात्मकता और कलात्मकता का आस्वाद कायम रहने से उपन्यास बेजोड़ बन गया है।
"नतोहम्" उपन्यास {मीनाक्षी स्वामी} में सिंहस्थ, उज्जैन के साथ भारतीय संस्कृति का रेखांकन
लब्ध प्रतिष्ठित रचनाकार मीनाक्षी स्वामी का बहुचर्चित उपन्यास ‘नतोऽहं’
भारत भूमि के वैभवशाली अतीत और वर्तमान गौरव के सम्मुख विश्व के नतमस्तक
होने का साक्षी है। यह भारतीय संस्कृति की बाह्य जगत से आंतरिक जगत की
विस्मयकारी यात्रा करवाने की सामर्थ्य को दर्शाता है।
साहित्य अकादमी
म.प्र. द्वारा अखिल भारतीय वीरसिंह देव पुरस्कार से सम्मानित व अटलबिहारी
हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल के पाठ्यक्रम में शामिल यह उपन्यास भारत की
समृध्द, गौरवशाली और लोक कल्याणकारी सांस्कृतिक विरासत को समर्पित है।
भारतीय संस्कृति के विराट वैभव के दर्शन होते हैं-सांस्कृतिक नगरी उज्जयिनी में बारह वर्षों में होने वाले सिंहस्थ के विश्वस्तरीय आयोजन में। उज्जैन का केन्द्र शिप्रा है। इसके किनारे होने वाले सिंहस्थ में देश भर के आध्यात्मिक रहस्य और सिध्दियां एकजुट हो जाती हैं। इन्हें देखने, जानने को विश्व भर के जिज्ञासु अपना दृष्टिकोण लिए यहां एकत्र होते हैं। तब इस पवित्र धरती पर मन-प्राण में उपजने वाले सूक्ष्मतम भावों की सशक्त अभिव्यक्ति है यह उपन्यास। इसमें मंत्रमुग्ध करने वाली भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के सभी पहलुओं पर वैज्ञानिक चिंतन है, भारतीय अध्यात्म के विभिन्न पहलुओं को खरेपन के साथ उकेरा गया है। उज्जयिनी अनवरत सांस्कृतिक प्रवाह की साक्षी है। यह केवल धर्म नहीं, समूची संस्कृति है, जिसमें कलाएं हैं, साहित्य है, ज्ञान है, विज्ञान है, आस्था है, परम्परा है और भी बहुत कुछ है। यात्रा वृतांत शैली के इस उपन्यास में उज्जैन के बहाने भारतीय दर्शन, परम्पराओं और संस्कृति की खोज है जो सुदूर विदेशियों को भी आकर्षित करती है। उज्जैन के लोक जीवन की झांकी के साथ भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं का सतत आख्यान भी है। उपन्यास के विलक्षण कथा संसार को कुशल लेखिका ने अपनी लेखनी के स्पर्श से अनन्य बना दिया है। नायक एल्विस के साथ पाठक शिप्रा के प्रवाह में प्रवाहित होता है, डुबकी लगाता है।
यह उपन्यास ‘नतोऽहं’ तथाकथित आधुनिकता से आक्रांत भारतीय जनमानस को अपनी जड़ों की ओर आकृष्ट करता है। भारतीय संस्कृति व अध्यात्म की खोज में रुचि रखनेवाले पाठकों के लिए यह अप्रतिम उपहार है।
प्राप्ति स्थान अमरसत्य प्रकाशन किताबघर प्रकाशन का उपक्रम
109, ब्लाक बी, प्रीत विहार
दिल्ली 110092
फोन 011- 22050766
e mail : amarsatyaprakashan@gmail.com
मूल्य चार सौ रुपए मात्र
उपन्यासकार परिचय
डा. मीनाक्षी स्वामी हिंदी की लब्ध प्रतिष्ठित रचनाकार चर्चित कृतियां - भूभल, नतोहम् (उपन्यास), अच्छा हुआ मुझे शकील से प्यार नहीं हुआ, धरती की डिबिया (कहानी संग्रह), लालाजी ने पकड़े कान (किशोर उपन्यास), कटघरे में पीडि़त, अस्मिता की अग्निपरीक्षा (स्त्री विमर्श), भारत में संवैधानिक समन्वय और व्यवहारिक विघटन, पुलिस और समाज (समाज विमर्श) आदि चालीस पुस्तकें। प्रतिष्ठित पुरस्कार सम्मान - भारत सरकार, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा तीस राष्ट्रीय पुरस्कार (हर विधा में हर वर्ग के लिए)। इनमें उल्लेखनीय हैं-केन्द्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय द्वारा फिल्म स्क्रिप्ट पर राष्ट्रीय पुरस्कार, केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पं. गोविन्दवल्लभ पंत पुरस्कार, सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, संसदीय कार्य मंत्रालय द्वारा पं. मोतीलाल नेहरू पुरस्कार, मध्यप्रदेश विधानसभा द्वारा डा. भीमराव आम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार, मध्यप्रदेश जनसम्पर्क विभाग द्वारा स्वर्ण जयंती कहानी पुरस्कार, आकाशवाणी, नई दिल्ली द्वारा रूपक लेखन का राष्ट्रीय पुरस्कार, एन.सी.ई.आर.टी.,नई दिल्ली द्वारा बाल साहित्य व चिल्ड्रन्स बुक ट्स्ट द्वारा किशोर साहित्य के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, महामहिम राज्यपाल मध्यप्रदेश तथा सहस्त्राब्दि विश्व हिंदी सम्मेलन में उत्कृष्ट लेखकीय योगदान के लिए सम्मानित, साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश द्वारा उपन्यास ‘भूभल’ पर बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार, साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश द्वारा उपन्यास ‘नतोहम्’ पर अखिल भारतीय वीरसिंह देव पुरस्कार। विशेष- प्रसिध्द कहानी ‘धरती की डिबिया’ गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के एम.ए. पाठ्यक्रम में। उपन्यास ‘नतोहम्’ अटलबिहारी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल के स्नातक पाठ्यक्रम में।
आपकी कई पुस्तकों का विभिन्न भारतीय भाषाओं व अंग्रेजी में अनुवाद। सम्प्रति-प्राध्यापक-समाजशास्त्र, मध्यप्रदेश शासन. सम्पर्क- सी.एच.78 एच.आय.जी. दीनदयाल नगर, सुखलिया, इंदौर मध्यप्रदेश भारत 452010 फोन- 0731-2557689. meenaksheeswami@gmail.com
भारतीय संस्कृति के विराट वैभव का अनावरण होता है-सांस्कृतिक नगरी उज्जयिनी में बारह वर्षों में एक बार होने वाले सिंहस्थ जैसे विश्वस्तरीय आयोजन में। यहां ऊर्जा का विस्तार और आध्यात्मिकता का संगम होता है। यह संगम किसने किया? दूर-दूर तक बसे मानव को मानव से जोड़ने का यह यत्न कैसे, कब और किसने किया? वर्षों बीत जाने पर भी श्रध्दा और विश्वास ज्यों का त्यों अडिग कैसे रह जाता है? यह जानने की उत्सुकता है यह उपन्यास।
मेरा उपन्यास "नतोहम्" अटलबिहारी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल होना निश्चय ही गौरव की बात है।
यह उपन्यास तथाकथित आधुनिकता से आक्रांत भारतीय मानस को यदि अपनी जड़ों की ओर लौटने की दिशा दे सका तो प्रयास सार्थक होगा।
यही कामना है।