गुरुवार, 21 जून 2012

ठीक अभी इसी वक्त - मीनाक्षी स्वामी

                                   
                                       
मैं नहीं जानती कि
अभी इसी वक्त
जबकि मैं बैठी हूं अपनी बालकनी में
ठंडी गुनगुनी सुबह में
गरम-गरम चाय के प्याले के साथ
सामने के खूबसूरत पेड़ों की
फुनगियों को देखते हुए
ठीक अभी इसी वक्त
कहीं क्या हो रहा होगा

शायद कहीं कोई आतंकवादी ए. के. 47
दनदना रहा हो....शायद
पर यह तो जरूर है कि कहीं कोई
फूल खिल रहा होगा जरूर

शायद कोई चिडि़या कैद हो गई हो
बहेलिये के जाल में....शायद
पर यह तो जरूर हे कि
ठीक अभी इसी वक्त किसी परिन्दे ने पहली बार
आसमान में ऊंची उड़ान जरूर भरी होगी

षायद कोई मुर्गी या बकरा
चीत्कार कर रहा होगा
हलाली के पहले....शायद
पर यह तो जरूर है कि
कोई मुर्गी अंडा से रही होगी जरूर
और कोई चूज़ा अंडे से बाहर आया होगा
ठीक अभी इसी वक्त

ठीक अभी इसी वक्त
चूडि़यां खनकी होंगीं
और सुलगा होगा चूल्हा
गरम-गरम रोटियों की सौंधी-सौंधी खुश्बू
ठीक अभी इसी वक्त मैंनें सूंघी है हवा में

शायद कहीं कोई साजिश कर रहा हो
किसी के खिलाफ
शायद समूची दुनिया के भी खिलाफ
ठीक अभी इसी वक्त...शायद
पर यह तो जरूर है
मंदिर में घंटियां बज रही होंगीं
ठीक अभी इसी वक्त
डनकी अनुगूंज
मेरे कानों से टकराई है

मैं नहीं जानती कि
अभी इसी वक्त
जबकि मैं बैठी हूं अपनी बालकनी में
ठंडी गनुगुनी सुबह में
गरम-गरम चाय के प्याले के साथ
सामने के खूबसूरत पेड़ों की
फुनगियों को देखते हुए
ठीक अभी इसी वक्त
कहीं क्या हो रहा होगा