बुधवार, 30 मार्च 2011

बेटियां

श्रीमती रश्मि दीक्षित, होशंगाबाद की यह कविता हाल ही में मैनें पढ़ी । मुझे अच्छी लगी, आप सबको भी अच्छी लगेगी

बोए जाते हैं बेटे उग जाती हैं बेटियां,
खाद पानी बेटों में पर लहलहाती हैं बेटियां ।

एवरेस्ट तक ठेले जाते हैं बेटे पर चढ़ जाती हैं बेटियां,
रूलाते हैं बेटे और रोती हैं बेटियां ।
   
कई तरह से गिराते हैं बेटे पर सम्हाल लेती हैं बेटियां,
पढ़ाई करते हैं बेटे पर सफलता पाती हैं बेटियां ।

कुछ भी कहें पर बेटों से अच्छी होती हैं बेटियां ।