स्वतंत्रता दिवस और राष्ट्रीय एकता आलेख
आजादी पाकर चौंसठ वर्ष हो गए। हमारे पास, आजादी को पाने का राष्ट्रीय आंदोलन का गौरवशाली इतिहास है। मगर इसे अंगूठा दिखाता हमारा वर्तमान हमारी एकता पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। एक उफान,-उछाल और उत्साह के साथ बहती, किलकारी मारती हुई वेगवती नदी सी राष्ट्रीय एकता इन चौंसठ सालों के अंतराल में खंड-खंड बंटकर सूखी पतली धार सी होकर ठहर ही गई है।
तब इस वेगवती नदी को कोई पार नहीं कर सकता था, बल्कि इसने तो बाहरी तत्वों को अपनी लहरों से उछाल से बाहर फेंक दिया था पर अब इसी सूखी-पतली धार को तो कोई भी पार कर सकता है। तब अंग्रेजों के विरूध्द राष्ट्रीय एकता चरम सीमा पर थी। उस वक्त भारत के सारे धर्म, जाति, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय सब ‘भारतीयों’ के रूप में उभरे थे। इसी भारतीयता की ताकत ने लंबे समय से षासन कर रहे अंग्रेजों को खदेड़कर बाहर कर दिया था।
अब प्रजातंत्र है, जनता के पास असीमित शक्ति है, फिर भी वह स्वार्थी तत्वों की कठपुतली बन देश को विघटन की ओर ले जा रही है।
यह खेदजनक है कि आज नागरिकों के बीच किसी न किसी तुच्छ आधार को लेकर अविश्वास की ऊंची दीवार खिंची हुई है। जनता के सामने न कोई आदर्श नेता है न मार्गदर्शक। इसी कारण वह राह भटक रही है।
जब नागरिक संकुचित और तुच्छ स्वार्थों से उपर उठकर ‘हम’ की भावना का अनुभव करेंगें। अपने छोटे से समूह के प्रति नहीं वरन् सम्पूर्ण राष्ट्र के प्रति। तभी बंधुत्व की भावना से नागरिक आपस में जुड़े रह सकेंगें।
यह कार्य चुनौती भरा है पर कठिन नहीं।
क्योंकि
सच तो यह है कि हमारी राष्ट्रीय एकता चुकी नहीं है। यह मौजूद है, हमारे भीतर स्थित प्राणों की तरह। समय-समय पर यह दिखाई भी देती है, जब हम प्राकृतिक प्रकोपों के समय सारे भेद-भाव भूलकर भारतीय हो जाते हैं। जब हम प्रेम के गुलाल और स्नेह के रंगों से भीगते हैं। ईद की सिवैयों से मुंह मीठा करते हैं। तब हम अपने विधर्मी पड़ौसी के सुख-दुख के साथी होते हैं। खासकर विदेशों में, जब हम सिर्फ भारतीय होते हैं-हिंदू, मुस्लिम, सिख, कश्मीरी या बंगाली नहीं।
यही हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता का सकारात्मक पहलू है, जो आशा का द्वार दिखाता है।
जरूरत है इस द्वार पर दस्तक देने की।
अभी भी देर नहीं हुई है, उजाला बाकी है बहुत, धूप भी बिखरी है। जरूरत है अपने मन-मस्तिष्क की उदारवादी खिड़कियों को खोलकर सद्भाव, प्रेम और मित्रता की रोशनी को भीतर आने देने की। तब एकता और सद्भाव की नई कोंपलें फूटेंगीं और होगा वसंत का नवपल्लवन।
इसी आशा के साथ स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
आजादी पाकर चौंसठ वर्ष हो गए। हमारे पास, आजादी को पाने का राष्ट्रीय आंदोलन का गौरवशाली इतिहास है। मगर इसे अंगूठा दिखाता हमारा वर्तमान हमारी एकता पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। एक उफान,-उछाल और उत्साह के साथ बहती, किलकारी मारती हुई वेगवती नदी सी राष्ट्रीय एकता इन चौंसठ सालों के अंतराल में खंड-खंड बंटकर सूखी पतली धार सी होकर ठहर ही गई है।
तब इस वेगवती नदी को कोई पार नहीं कर सकता था, बल्कि इसने तो बाहरी तत्वों को अपनी लहरों से उछाल से बाहर फेंक दिया था पर अब इसी सूखी-पतली धार को तो कोई भी पार कर सकता है। तब अंग्रेजों के विरूध्द राष्ट्रीय एकता चरम सीमा पर थी। उस वक्त भारत के सारे धर्म, जाति, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय सब ‘भारतीयों’ के रूप में उभरे थे। इसी भारतीयता की ताकत ने लंबे समय से षासन कर रहे अंग्रेजों को खदेड़कर बाहर कर दिया था।
अब प्रजातंत्र है, जनता के पास असीमित शक्ति है, फिर भी वह स्वार्थी तत्वों की कठपुतली बन देश को विघटन की ओर ले जा रही है।
यह खेदजनक है कि आज नागरिकों के बीच किसी न किसी तुच्छ आधार को लेकर अविश्वास की ऊंची दीवार खिंची हुई है। जनता के सामने न कोई आदर्श नेता है न मार्गदर्शक। इसी कारण वह राह भटक रही है।
जब नागरिक संकुचित और तुच्छ स्वार्थों से उपर उठकर ‘हम’ की भावना का अनुभव करेंगें। अपने छोटे से समूह के प्रति नहीं वरन् सम्पूर्ण राष्ट्र के प्रति। तभी बंधुत्व की भावना से नागरिक आपस में जुड़े रह सकेंगें।
यह कार्य चुनौती भरा है पर कठिन नहीं।
क्योंकि
सच तो यह है कि हमारी राष्ट्रीय एकता चुकी नहीं है। यह मौजूद है, हमारे भीतर स्थित प्राणों की तरह। समय-समय पर यह दिखाई भी देती है, जब हम प्राकृतिक प्रकोपों के समय सारे भेद-भाव भूलकर भारतीय हो जाते हैं। जब हम प्रेम के गुलाल और स्नेह के रंगों से भीगते हैं। ईद की सिवैयों से मुंह मीठा करते हैं। तब हम अपने विधर्मी पड़ौसी के सुख-दुख के साथी होते हैं। खासकर विदेशों में, जब हम सिर्फ भारतीय होते हैं-हिंदू, मुस्लिम, सिख, कश्मीरी या बंगाली नहीं।
यही हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता का सकारात्मक पहलू है, जो आशा का द्वार दिखाता है।
जरूरत है इस द्वार पर दस्तक देने की।
अभी भी देर नहीं हुई है, उजाला बाकी है बहुत, धूप भी बिखरी है। जरूरत है अपने मन-मस्तिष्क की उदारवादी खिड़कियों को खोलकर सद्भाव, प्रेम और मित्रता की रोशनी को भीतर आने देने की। तब एकता और सद्भाव की नई कोंपलें फूटेंगीं और होगा वसंत का नवपल्लवन।
इसी आशा के साथ स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
अब प्रजातंत्र है, जनता के पास असीमित शक्ति है, फिर भी वह स्वार्थी तत्वों की कठपुतली बन देश को विघटन की ओर ले जा रही है।
जवाब देंहटाएंसारी दास्ताँ को वयां कर दिया आपकी इस पंक्ति ने ......!
आज नागरिकों के बीच किसी न किसी तुच्छ आधार को लेकर अविश्वास की ऊंची दीवार खिंची हुई है। जनता के सामने न कोई आदर्श नेता है न मार्गदर्शक।
जवाब देंहटाएंsahi drishtikon diya hai- vande matram
एक दिन हमें अपनी एकता का भास होता है।
जवाब देंहटाएंइस अवसर पर आपके मुंह में घी शक्कर।
जवाब देंहटाएंआपका यह लेख आंखें खोलने वाला है ।परन्तु दुखद सच यह है कि शिक्षा जगता के निर्माता से लेकर ऊपर तक जाति-पाँति ,कषेत्रवाद आदि देश की जड़ों को कुतर रहे हैं । एन बी टी से प्रकाशित शिक्षा विषयक आपकी पुस्तक प्रभाव्शाली है ।बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसकारात्मक लेख
जवाब देंहटाएंबहुत सकारात्मक सोच..सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और प्यारा लेख है बधाई हो आपको आप भी जरुर आये साथ ही यहाँ शामिल सभी ब्लागर साथियो से आग्रह है की मेरे ब्लाग पर भी जरुर पधारे और वहां से मेरे अन्य ब्लाग पर क्लिक करके वह भी जाकर मेरे मित्रमंडली में शामिल होकर अपनी दोस्तों की कतार में शामिल करें
जवाब देंहटाएंयहाँ से आप मुझ तक पहुँच जायेंगे
यहाँ क्लिक्क करें
MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
बहुत ही प्रेरक व विचारशील आलेख है । यह सच है कि कुछ बातें काफी निराश करतीं हैं लेकिन ऐसे लोगों की भी कमी नही है जो अपने देश और समाज के लिये सोचते हैं । आज यही सब बखूबी दिखाई दे रहा है ।
जवाब देंहटाएंमीनाक्षी जी आपने शायद अपने मेल नही देखे ।
बिलकुल सठिक ! आज हम जागरुक कम , भागमभाग में ज्यादा लिप्त है !
जवाब देंहटाएंआपकी सुन्दर भावनाएँ मन को छूती हैं,मीनाक्षी जी.
जवाब देंहटाएंइस अनुपम अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
समय मिलने पर अवश्य दर्शन दीजियेगा.
bahut badiya sakaratmak prastuti ke liye aabhar..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन के द्वारा राह दिखाती पोस्ट, हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएं------
क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
मीनाक्षी जी, ------
जवाब देंहटाएंशायद आपने ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें अभी तक नहीं देखीं। यहाँ आपके काम की बहुत सारी चीजें हैं।
Meenakshi jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
जवाब देंहटाएंआप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए...
BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये
MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
MITRA-MADHUR कृपया यहाँ चटका लगाये
♥
जवाब देंहटाएंआदरणीया डॉ.मीनाक्षी जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
अभी भी देर नहीं हुई है,
उजाला बाकी है बहुत, धूप भी बिखरी है।
जरूरत है अपने मन-मस्तिष्क की उदारवादी खिड़कियों को खोलकर सद्भाव, प्रेम और मित्रता की रोशनी को भीतर आने देने की।
तब एकता और सद्भाव की नई कोंपलें फूटेंगीं
और होगा वसंत का नवपल्लवन।
आपकी सकारात्मक दृष्टि को नमन !
राष्ट्रभावना जाग्रत हो , यही कामना है !
विगत और आगामी सभी त्यौंहारों , पर्वों और नवरात्रि के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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जवाब देंहटाएं… और हां , नई पोस्ट का इंतज़ार है :)